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Thursday, 2 January 2020

यही ब्रह्म है

एक ओंकार सत नाम करता पुरख निर्भव निर्वैर अकाल मुरत अजोनी सेभंग गुरुप्रसाद जप आदि सच जुगाद सच है भी सच नानक हू सीबी सच ----
"अव्वल अल्लाह नूर उपाय कुदरत के सब बन्दे ,
एक नूर से सब जग उपजे कौन भले कौन मंदे "?
समस्त धार्मिक किताबो मे ये बात स्पष्ट तौर पर लिखी हुई है ।कि इन्सान अद्वैत अवस्था मे था बिभिन्न रूप बदलता हुआ प्रकट हुआ है और कायनात का मालिक बना है ।ये फल के रूप मे है, कि जिस प्रकार बीज ही प्रारंभ और अन्त है।उसी प्रकार ये मानव प्रारंभ अन्त है ।आरम्भ मे बीज नजर नही आता।क्योंकि वोह जड़ तना शाखा फूल पत्तियों मे सैर कर रहा होता है।इसी तरह इन्सान है । हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का फरमान है कि -
"मै अल्लाह के नूर से हू ,और तमाम चीजें मेरे नूर से हैं"। "सबसे पहले अल्लाह ने मेरी ज्योति को पैदा किया "। हम सृष्टि कायनात पर नजर डालें ।तो हमें दो क़िस्म के जानवर नजर आते हैं एक मास खाने वाले दूसरे घास खाने वाले ।मास खाने वाले जानवर घास खाने पर डिपेंड है ।शाकाहारी जानवर घास के बिना ज़िन्दा नहीं रह सकते ।घास पानी पर डिपेंड है ।पानी की पैदाइश आग से है ।आग बिभिन्न प्रकार की वायु के रगड़ से पैदा होती है ।और वायु को ठहरने के लिए आकाश (खाली जगह )का होना अति आवश्यक है ।
आकाश शून्य अवस्था है ।शून्य अवस्था में क्रमानुसार विकास करना , एक दूसरे की ज़रूरत को पूरा करना बगैर ज्ञान और इरादे के असंभव है ।यदि ये मानें कि ये कार्य स्वतः ही हो रहा है ।तो ऐसा कहना अज्ञानता है ।ज्ञान और इरादे का संबन्ध ज़ात से है ।हरकत आत्मा मे है ।इस लिए ज्ञान और इरादे के लिए आत्मा का होना अति आवश्यक है ।पवित्र क़ुरआन के अनुसार आत्मा (रूह) अल्लाह का आदेश है ।आदेश से पहले अल्लाह है ।उसी ज़ात ने ये कुल कारखाना बनाया है ।और मानव इस कायनात का खुलासा है ।इस मानव के अन्दर ही पन्च भूत है ।ये मानव खुलासा कायनात है।और ये मानव ही आरंभ और अन्त है ।समस्त मानव जाति एक ही असल से पैदा की गई हैं ।तो उस ज़ात तक पहुंचने का तरीका भी एक ही है ।
सारे धर्म ग्रंथ साक्षी देते हैकि अल्लाह परमेश्वर एक ही है ।उसके सिबा कोई उपास्य नही उसी परमात्मा को हर एक धर्म ग्रंथ मे अनेक नामों से याद किया गया है ।वोह अल्लाह इकाई है अखण्ड है निराकार है ।परन्तु अपने दर्शन कराने के लिए अवतार के रूप में प्रकट होता है ।
"ग़ैर मौसूफ मौसूफ नज़र आता हूं
इसकी खास बजह है महरबां हूं मैं "।(सालार )
उस की तअरीफ मे भारतीय संत फरमाते है ---
"वाचातीतम् मनोतीतम् भावातीतम् अगोचरम् निश्शून्यम् निरालंबम् निश शब्दम् ब्रह्ममुच्चते ।।
ब्रह्मानंदम् परम् सुखदम् केवलम् ज्ञान मूर्तिम् ।द्वंदातीतम् ग-ग-न सदृश्य तत्व मश् श्यादि लक्ष्यम् ।।
एकम् नित्यम् वि-म-ल व-च-नम् सर्वादि साक्षीभूतम् ।
भावातीतम् त्रिगुण रहितम् सद् गुरू तन्नमामि ।।
गुरू ब्रह्मा गुरु विष्णु गुरू देवो महेश्वरः।
गुरू साक्षात् परब्रह्म तस्मय श्री गुरूवे नमः "।
अर्थ :-----वोह ईश्वर कही सुने से परे है. वोह मानवीय विचार चिंतन की संकीर्ण परिधि में नहीं समाता वोह मानवीय आकलन में नहीं बैठता और वोह अगोचर
है ।वोह शून्य भी नहीं है, और न वोह शब्द है यही ब्रह्म है ।वोह ब्रह्म क्या है? वोह आनन्द है परम् सुख है वोह केवल ज्ञान की मूर्ति है ।(वोह स्वयं परमेश्वर का प्रतीक है।) वोह दोई से परे है वोह आकाश के समान सर्व व्याप्त है. वोह "तू है"का लक्षण है।(हुवल्लाह),वोह एक है, स्थाई, उसके बचन निर्मल हैं, वोह ब्रह्माण्ड की वस्तुओं से प्राचीनतम् है।वोह सदैव प्रकट है, वोह मानवीय भाव से दूर हैं वोह तीन गुणों से परे है ।गुरू ही ब्रह्मा है, गुरू ही विष्णु है, गुरू ही देवों के देव महेश हैं ,गुरू ही साक्षात परब्रह्म है।ऐ सच्चे गुरू मैं तुझको नमस्कार करता हूँ ।
गुरू को पाने से ही अल्लाह मिलता है । चिर काल मे विभिन्न समुदायों मे ऋषि मुनि नबी रसूल प्रकट होते रहे अब ऐसे गुरू का प्रकट होना था।जो समस्त कोमौं को एक कर दे।वोह एक जगद्गुरु के द्वारा ही संभव हो सकता है ।इसलिए विश्व शांति के लिए एक गुरू का होना जरूरी है।प्रत्येक धर्म ग्रंथ उसकी भविष्य वाणी मौजूद है वेदों मे उसे नराशंस पुराणों मे कल्कि अवतार बाइबिल मे फारकलीत धम्म पद में उसे मैत्रीय तथागत बुद्ध तथा अरबी भाषा मे अहमद मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम कहते है।
बाबा गुरू नानक देव जी भी उसी गुरू की शान में फरमाते हैं :---
[1]"अव्वल नाम खुदाए दा दूजा नाम रसूल
नानक कालिमा जे पढ़ें ता दरगाह होंयें क़ुबूल "।
[2] "दिल मे तालिब तीरथ क्या?
दिल में मुहम्मद जाना
दिल में हसन हुसैन फातिमा दिल में है मौलाना"।
दिल में मेहर मुहब्बत कअबा दिल में गोरस्थाना ।।
बाबा गुरू नानक देव जी महान आत्मा थे। अल्लाह तक पहुंचने का एक ही उपाय बता रहे हैं वोह """नूर"""हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का है ।